मन की ज्वाला, धधक रही है ,
मुँह की सिलन, खटक रही है ,
जड़मत हो तुम, क्यों शोषित होने,
अंदर अंदर , क्यों सुलग रहे हो,
स्वयम्भू हो तुम , इंसान हो तुम ,
मौनव्रत , क्यों भोग रहे हो।
कष्ट झेल रहे हो, तुम सदियो से,
आभाव तुम्हारा,
क्यों, जन्मसिद्ध अधिकार है।
तरस रहा हु मैं , सदियो से प्रतिकार को ,
ये मौनव्रत , कब तक।
मन , मष्तिक , इन्द्रिया , शाश्वत क्यों ,
दीन , दरिद्र , निर्बल , जात पात , मजहब ,क्यों।
इंसान हो तुम , मुआ नहीं ,
गर्म लहू है , सर्द नहीं है ,
धमनियों में प्रवाह, निरंतर।
फिर , सोच में तेरे ,
ये मौनव्रत , कब तक।
अधीर अग्र बन , झकझोर करो ,
मानव की ये , विषमता को,
ओ मौनी तुम अब ध्वस्त करो।
सब्र नहीं , अभ्यास नहीं , अब कोई जड़मत नहीं ,
वक्त की बेदी पर चढ़ने को ,
यहाँ कोई ,अब मौनव्रत नहीं।
पिकाचु
मुँह की सिलन, खटक रही है ,
जड़मत हो तुम, क्यों शोषित होने,
अंदर अंदर , क्यों सुलग रहे हो,
स्वयम्भू हो तुम , इंसान हो तुम ,
मौनव्रत , क्यों भोग रहे हो।
कष्ट झेल रहे हो, तुम सदियो से,
आभाव तुम्हारा,
क्यों, जन्मसिद्ध अधिकार है।
तरस रहा हु मैं , सदियो से प्रतिकार को ,
ये मौनव्रत , कब तक।
मन , मष्तिक , इन्द्रिया , शाश्वत क्यों ,
दीन , दरिद्र , निर्बल , जात पात , मजहब ,क्यों।
इंसान हो तुम , मुआ नहीं ,
गर्म लहू है , सर्द नहीं है ,
धमनियों में प्रवाह, निरंतर।
फिर , सोच में तेरे ,
ये मौनव्रत , कब तक।
अधीर अग्र बन , झकझोर करो ,
मानव की ये , विषमता को,
ओ मौनी तुम अब ध्वस्त करो।
सब्र नहीं , अभ्यास नहीं , अब कोई जड़मत नहीं ,
वक्त की बेदी पर चढ़ने को ,
यहाँ कोई ,अब मौनव्रत नहीं।
पिकाचु