Monday, November 28, 2016

मैं , मैं , में ही खुद हु

मैं अम्बर हु ,
मैं धरती हु ,
मैं सृष्टि हु ,
मैं ब्रह्मा हु ,
फिर क्यों मैं ,
मैं , मैं , में ही खुद हु।

मेरी आशा ,
मेरी अभिलाषा ,
मेरी महत्वाकांछा ,
मेरी श्रेष्ठता की परिभाषा ,
मैं , मैं , मैं , में ही है ।

मेरी उमंग ,
मेरी तरंग ,
मेरी उड़ान ,
मेरी  अहम में।
भूल गया मैं,
मैं  मैं में ,
मैं तो एक हु ,एक अदना सा इंसान।

मैं की दोहन ,
मैं की विनाश ,
मैं की  विभित्सका के  ,
प्रारब्ध सोच  से ,
थर थर थर ,
काँप रहे है, हम -सब ।

मैं की चाल, एक  विनाशकाल है।
अवनि ,अम्बर का सुप्त काल  है।
फिर क्यों मैं ,
मैं , मैं , में ही खुद हु।

पिकाचु




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