Sunday, November 6, 2016

कवि तो फकीरी है

पागल , दीवाना ,
तो हु मै ,
जो कविता  कर रहा हु ,
ठहरा हुआ,
तो हु मैं ,
तभी तो शब्दो  की,
आवारगी कर रहा,
हु , मैं।

मन में गुबार है ,
यही तो मेरी कविता  का आधार है।
इसके बिना मैं क्या ,
मेरा जीवन ही निराधार है।

आप चंद लोगो की,
शोहबत ही ,अच्छी है।
न जाने कवियों की,
तोहमत तो न अच्छी है।


कवि  तो फकीरी  है ,
भाग्यवाले को ही,
ये नसीबी है।
ये तो ईद की ईदी है,
पाक , पवित्र , खाविंदी है ,
नेमत है , इनायत है।
खुदा का , खुदा के बन्दों पर।


मत समझना ये ,
वक्त का , भाग्य का ,
दोष है।

ये तो टूटते हुए सितारों को ,
फिर से चमकने का पैगाम है।
ठहरे हुए पानी का,
बहने का आयाम है।
खुशहाल गाँवो में
बैसाखी , बिहू , ओणम ,
के त्यौहार में सबकी मुरादे
पूरी करने का स्वर्णिम आगाज  है।


पिकाचु

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