Thursday, June 2, 2016

हवाई यात्रा: कहानी एक साइलेंट एयरपोर्ट की

                                             हवाई यात्रा: कहानी एक  साइलेंट एयरपोर्ट की 

जीवन एक निरन्तर  यात्रा का नाम है  जो गतिमान  है और जो निरूत्तर होता है हमारी  अंतिम  यात्रा में ।   

जीवन की इस निरंतरता को बनाए रखने के लिए हम यात्रा करते और उन्ही यात्राओं  में से हाल फिलाल में  घटी हुई एक हवाई यात्रा की घटना का जिक्र करता हूं।  

मैं यात्री नहीं था अपितु यात्रा करने वाले को अगवानी करने हेतु हवाई अड्डे गया था।  मेरे माता -पिता लखनऊ से कम लागत वाली विमान सेवा से  डेल्ही आ रहे थे यानि की टर्मिनल १ डी।  
रात का समय था , समय  १० बजे का आगमन का था।  मैंने दोस्त से  उसकी मोटर कार ली और पहुंच गया टर्मिन १ डी रात के ९.३० बजे और लगा दी गाड़ी पार्किंग में जिसका चार्ज था ९० रुपये घंटा।  कोई बात नहीं एक घंटे का ही भुगतान करना है ऐसा सोच कर गाड़ी लगा दी मैंने।  
  डिस्प्ले बोर्ड पर आगमन के समय का सही वक़्त  दिखा रहा था सो मैं संतुष्ट हो इंतजार करने लगा , तभी कहानी में थोड़ा मोड़ आया अचानक ही  मौषम बिगड़ गया।  तेज हवा और बरसात के साथ बादल  गरजने और बिजली चमकने लगी।  थोड़ी देर में डिस्प्ले बोर्ड पर लिख कर  आने लगा की  प्लेन डाइवर्टएड।  मैंने यह सोचा की चलो  , थोड़ी देर में  यथा- स्थिति से अवगत कराया जायेगा। 

ऐसा कुछ नहीं घटा ।  हवाए तो चली गए  , पानी तो बरस गई , बादल  तो गरज गए  किन्तु  डिस्प्ले बोर्ड पर लिखा डाइवर्टएड का सन्देश यथावत रहा।  मैं असमंजस में था क्या करू क्या न करू।  सोचा कोई उद्घोसना होगा पर पता चला की डेल्ही एयरपोर्ट तो मौन एयरपोर्ट है , मुझे आज पता चला की मौनी बाबा से सरोकार बहुत महंगा होता है।  

मैंने सुरक्षा कर्मी से निवेदन किया की वस्तु  स्थिति का कैसे पता चलेगा,  तो उसने दया खाते हुए एक टेलीफोन नंबर दिया।  मैंने  जब उस नंबर पर फ़ोन किया तो किसी  सख्स ने फ़ोन उठाते ही सबसे पहले पूछा की नंबर किसने दिया  है।  मैंने बोल सिक्योरिटी से नंबर लिया है और यह बताया गया है की एयरलाइन्स के ऑफिस का है।  इतना बोलते ही उस सख्स ने फ़ोन रख दिया।  
कोई चारा न देख मैंने  मोबाइल  पर इंटरनेट कर एयरलाइन्स के कॉल सेंटर पर फ़ोन लगाया।  स्वचालित उत्तर पर कॉल सेंटर का प्रणाली था और जब भी मैं ग्राहक सेवा प्रतिनिधि से  बात करने का बटन दबाता  तो काल वियोजित  हो जाता।  ऐसा कई बार हुआ , थक हार  कर मैंने फ़ोन करना ही बंद कर दिया।  क्या रात के दस बजे ग्राहक नहीं होते ? क्या ग्राहक सेवा नाम का है ? मैंने सोचा विमान कंपनी को जवाब देना चाहिए ?? 
अब एक ही रास्ता दिखा की टिकट काउंटर पर जा कर पूछू ।  टिकट काउंटर कहा था  , भाई  उपर  , यानि की आगमन कच्छ पर।  मैं सीढ़िया चढ़ कर आगमन कच्छ पंहुचा , क्योकि अब मुझे इस एयरपोर्ट के प्रणाली से विश्वास उठ रहा था और मन के एक कोने  यह भी  डर समा गया था  लिफ्ट बंद हो गया तो , मैं तो गया।  

भारी  कदमो से मैं  टिकट काउंटर पर बैठे हुए सख्स से पूछा , उसने ऊंघते हुए कुछ बोला।  मैंने जोर से बोला भाई साहब लखनऊ की फ्लाइट डाइवर्ट हो कँहा  गई है।  जवाब आया निचे डिस्प्ले हो रहा होगा , मैंने कहा नहीं। तो जवाब आया की फ्लाइट डाइवर्ट हो कर जयपुर लैंड कर गया है।  धन्यवाद।  अगला जवाब।  यह काम एयरपोर्ट रखरखाव करने वाली कंपनी का है।  हमारा नहीं।  मैंने कहा पर विमान  चलाने वाली कंपनी तो आपकी है न।  निचे कई लोग जानकारी के आभाव में खड़े है , क्या यह आपका कर्तव्य नहीं की आप उनको जानकारी दे।  मैंने हँसते हुए कहा भाई आप युवा है , आपको तो पहल करना चाहिए।  मेरा देश बदल रहा है , आप भी तो बदलो।  कोई जवाब न आया।  

तभी मेरे फ़ोन की घंटी घनघनाए , और पिता ने बताया की फ्लाइट जयपुर से मौसम ठीक होने के बाद चलेगा , जो की १ बजे रात के आसपास है।  मैंने एयरपोर्ट पर  ही इंतजार करने का सोचा और बैठ गया। एक कोने में कुर्सी पर  बैठे - बैठे कब  नींद आ गई पता नहीं चला और  जब  नींद खुली तो पता चला की फ्लाइट डेल्ही लैंड करने वाली है।  

मोबाइल के तरफ देखा तो ४ बजने वाले थे. इतनी सुबह उठ तो गया पर प्यास लग गई थी , सो पानी  का बोतल खरीद  कर पानी  पिया। 
सबेरे सबेरे पानी पिया था तो प्रेशर आना लाजिमी  था।  पेट पकड़ में शौचालय के तरफ दौड़ पड़ा।  वहाँ जाकर एक अजीब से स्थिति देखा की सारे शौचालय अंग्रेजी शैली के है और सारे  के सारे के नल टूटे हुए है। 

क्या आप  सोच सकते है  स्थिति में आपको कितना गुस्सा और पीड़ा होता होगा।  मैंने सारे घटना को नजर अंदाज कर दिया था , पर जब ये हो गया तो मुझे लगा पानी और प्लेन दोनों सर के उपर से गुजर गया है और अब आप लोगो को यह  बताना जरुरी है सो मैंने लैपटॉप उठाया और लिखने लगा। 

क्या हम देश में कभी  ऐसे स्थिति बनायँगे और पाएंगे की इन छोटी छोटी जरूरतों का हम सभी लोग ध्यान रखेंगे।  क्या साइलेंट एयरपोर्ट बना कर पुरस्कार लेना ही हमारा कर्म और धर्म है।   क्या एक ऐसी व्यवस्था जो परस्पर  संवादात्मक न हो की जरुरत है।  क्या ५४० रुपये पार्किंग का देना जायज है ?

  • जवाब आपको देना है और  मैं इंतजार में बैठा हू.........