Tuesday, November 22, 2016

भीड़ में दौड़ लगी

भीड़ में दौड़ लगी ,
जमात है,
ऐसी  जनता जनार्दन  की ,
भूखे , अर्ध नग्न , शोषित , कुपोषित ,
नाच रहे है , पूंजीपति , नेताओ के ,'
वादे , शरारते , झूठ के पुलिंदों में।


यकीन हमें नहीं होता , करते है चर्चा परिचर्चा ,
क्या सोच की आयाम इतनी   विनयमित ,
भुखमरी ,
क्या , दृष्टिहीन इंसान पैदा करती।

कोशिश करो , कुछ भूखे रहो , गन्दी नाली ,
भिनभिनाते मछर , चिपके - पिचके
कुपोषित अमाशय के मध्य ।
संयोग नहीं ,  सम्भोग करो इनका।

भूल जाओगे तुम  ये आसय ,
क्या इतने असहाय भूख कर दे ?
यकीं के साथ तुम कहोगे ,
जागना है हमें  , इंसान हु ,
इंसान के लिए लड़ाई लड़नी है।

पूछता है तबका ये ,
कितने है साथ अपने ,
तुम हो या और भी कोई ,
एक अकेला कुछ नहीं।
शंखनाद , बिगुल का , बनाओ न शगल ,
मिट जाओगे , मिटा दिए जाओगे ,
रुको तुम बहो नहीं।

मेरी जमीर जागी नहीं, अभी भी एकाग्रता कैद है।
नहीं लड़ पाउँगा।
मोबाइल , वातानाकूलक , मोटर ,
लपटा , चिपटा हो इनसे शर्प सा  ,
क्यों विचार मेरे लापता हो रहे है ?
रुक नहीं सकता , विलासिता , यौन क्रिया ,
दहाड़ मारे,  शोषित होने बुला रही है।

मैं हु इस देश का माध्यम वर्ग , सड़ गया हू ।
निकलना है गर्त से।
इन्तेजार नहीं , वक्त नहीं ,धैर्य नहीं।
स्वयम का आधार बनाना है।
जागना है मुझे , तुम्हे  और सबको 
जगाने के लिए नहीं ,आगे की श्रृंखला के ,
सुखमय , स्वस्थ , स्वर्णिम भविष्य
के कोशिश , इन्तेजार और आगाज में।


पिकाचु








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