एक मिनट रुकिए ,
आज तो पर्व है ,
धन का "धनतेरस"
कुबेर ने खजाना खोल दिया,
लूट सके तो लूट लो ,
का ऑफर है ,
अवहार , उपहार, का मौसम आया ,
किस्तो में ,रिश्ते निभाने का ,
अनोखे वितीय प्रस्ताओ,
की बहार है।
संसार रंगीन है ,
फिर भी कुछ लोग है ,
जो ग़मगीन है ,
तमाशबीन बन,
दूर खड़े धनतेरस में,
धन को तरश रहे है।
देश भी हमारा अनोखा है ,
अजूबो से पट्टा पड़ा है ,
कुछ है जिनके पास,
सब कुछ है ,सब ख़ुशी है।
कुछ है ,जो हमारे नजर में ,
आदमी ही नहीं है ,
निरही , उदासीन , दुखी ,
जो वक्त के बोझ तले दबे है ।
नौ लखा हार कहाँ ,
दो जून की रोटी नसीबी ,
एक त्यौहार है, उनका।
प्रदुषण , गंदगी , अराजकता से ,
रोज का दो चार है इनका।
दोस्तों , पर्व धनतेरस का है ,
आओ ,चल चले ,
उजाला फ़ैलाने ,
कुछ अपनों को उठाये ,
नसीबी और खुसनसीबी ,
का दौर लाये ,और ,
गीरते हुए मानवीय ,
मूल्यों को और गिरने से बचाये।
पिकाचु
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