Thursday, October 27, 2016

एक मिनट रुकिए


एक मिनट रुकिए ,
आज तो पर्व है ,
धन का "धनतेरस"
कुबेर ने  खजाना खोल दिया,
लूट सके तो लूट लो ,
का ऑफर है ,
अवहार , उपहार, का मौसम आया ,
किस्तो में ,रिश्ते निभाने का ,
अनोखे वितीय  प्रस्ताओ,
की बहार है।

संसार रंगीन है ,
फिर भी कुछ लोग है ,
जो ग़मगीन है ,
तमाशबीन बन,
दूर खड़े धनतेरस में,
धन को तरश रहे है।

देश भी हमारा अनोखा है ,
अजूबो से पट्टा पड़ा है ,
कुछ है जिनके पास,
सब कुछ है ,सब ख़ुशी है।

कुछ है ,जो हमारे नजर में ,
आदमी ही   नहीं है ,
निरही , उदासीन , दुखी ,
जो वक्त के  बोझ तले दबे है ।

नौ लखा हार कहाँ ,
दो जून की रोटी नसीबी ,
एक त्यौहार है, उनका।
प्रदुषण , गंदगी , अराजकता से ,
रोज का दो चार है  इनका।

दोस्तों  , पर्व  धनतेरस का है  ,
आओ ,चल  चले ,
उजाला फ़ैलाने ,
कुछ अपनों को उठाये ,
नसीबी और खुसनसीबी ,
का दौर लाये ,और ,
गीरते  हुए  मानवीय ,
मूल्यों को और गिरने से बचाये।


पिकाचु


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