Saturday, November 26, 2016

इरादा अब तो गढ़ ले तू

एहसास धड़कनो का ,
धड़कते दिल  में रहता है।

एहसासो की मायूसी में ,
हम तुम क्यों , यू ही ,
गीले शिकवे की नुमाईश,
भरी  मजलिश में करते है।

पता है तुमको जो  ,
इरादे ,ईमान के।
चंद सिक्को में ही,
इंसान के  आज  डोलते है।

रिश्तो की दरकने
की आवाजे ,
दिल के सुराखों से ,
निकलकर,
निर्बाध  हो ,
लबो की आहो से ,
आहिस्ता , आहिस्ता
एहसासों के टूटने का
इजहार करता  है।

एहसासों की तिजारत ,
हसीनो की वफाई है।

फिर क्यों ,
दीवानो ने सदियो से
अमिट  ये रीति ,
बना रखी है।
शारबो की महफ़िल में ,
गमो को हलक करना ,
क्यों जिंदगी का  मनोविनोद ,
बना रखा  है।

मायूसी में फसाने का,
सिरा पकड़ना ,
छोड़ के अब तुम।
उड़ने की तमन्ना,
जिगर में  पाल, ले,
अब  तू।

थपेड़ो से किनारा कर ,
प्रतिघात करने का ,
इरादा,
अब तो गढ़ ले तू।
अहसासों का साथ,
अब तो ,छोड़ दे तू।

पिकाचु
https://complaintcare.blogspot.in/


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