क्या लिखू , इस पल ,
तन्हा हु मैं , लिए
हाथ में बस ,
चंद कागज के टुकड़े।
पागल थी दुनिया ,
कुछ पल पहले ,
हरे ,लाल ,कागज के ,
टुकड़े के पीछे ।
तनहा है ये अब ,
पूछता है ये अब ,
घायल हु ,क्यों मैं ,
परेशान हु, क्यों मैं
साथ क्यों नहीं कोई ,
सोचता हु मैं अब।
मुरीद, सारे ,
जो थे हमारे ।
क्यों, एक पल में ,
हवा हो, क्यों ,
रुखसत हो गये।
दिन तो बदलती है सबकी ,
हँसता हु मैं ,
रंगत बदलने में ,
मुझ सा,
सानी था,
न कोई।
इतराती थी ,
बलखाती थी,
आबो हवा में मेरे आने से,
सूरा और शबाब ,
बदमस्त हो जाती थी।
देखो कैसा ,
ये वक़्त है ,
इंसां न कोई ,
हरे ,लाल ,कागज को ,
देखे, इसे अब।
किस्से थे मेरे ,
जाने हर और कितने ,
बेचारे थे, हम तुम, इनके बिना।
ऐसा ये , देशकाल आया ,
देखो जरा आज , रुस्वा है सब ,
लाचार हो सब ,
अपमानीत कर मुझे ,
क्यों ,
फेंके जा रहे है,
नदी , नालो ,में अब ।
शोभा कभी था ,
आभा कभी था ,
उत्सव भी ,मैं था ,
सभी कुछ तो, था मैं ही।
क्यों डरते है आज ,
मुझसे सभी, यू ही ।
रिश्ते , वफ़ा, नाते ,
ईशारो पे मेरे,
बिकते थे, सब तो सारे।
कहु क्या, मैं इसको ,
कहते है किस्मत ,
जो इसको।
कैसे बदल गई।
न तुम हो , न वो है।
बस तनहा हु मैं ,
खड़ा हु मैं , खड़ा हु मैं।
पिकाचु
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