Thursday, October 27, 2016

एक तितली : काली सी


शाम हो रही थी ,
लौट रहे थे लोग ,
घर की ओर।

सड़क पे चल रहा था  ,
पों-पों, चे -चे ,
का रेलम पेला।

होड़ लगी  थी ,
क्योंकि छूटे थे,
सब,एक साथ।

इत्मिनान से चल रहा था ,
एक शख्स और  एक बच्चा।
साथ उनके था एक संयोग ,
एक तितली , काली सी  ,
उड़ रही थी, बीचोबीच सड़क  ,
रिक्शा , गाड़ी , मोटर साथ।

गाड़ियों के रफ़्तार से ,
हवा  की नोक झोक से  ,
तितली उड़ती झोके से ,
कभी इधर , कभी उधर ,
हैरान -परेशान ,
जान जोखिम में डाल।

शख्स और बच्चा देख रहे सब ,
तितली का संघर्ष ,
मानव के गमनागमन के साधन  साथ।

तितली आस- पास चित्कारती ,
अनुनय -विनय करती,
शख्स और बच्चे के पास ,
ऐसा लगता, चंद लम्हे में  ,
काली सी  तितली मृत।

क्लिष्ट  ये क्षण ,
पुरुषत्व विहिन वह शख्स ,
मैं था ,
सोच रहा था ,
इस सोच के साथ
रेलम पेले के ,
पों-पों, चे -चे में ,
खो कर संवदेनहीन हो ,
मर गया था, हर शख्स।

पिकाचु

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