शाम हो रही थी ,
लौट रहे थे लोग ,
घर की ओर।
सड़क पे चल रहा था ,
पों-पों, चे -चे ,
का रेलम पेला।
होड़ लगी थी ,
क्योंकि छूटे थे,
सब,एक साथ।
इत्मिनान से चल रहा था ,
एक शख्स और एक बच्चा।
साथ उनके था एक संयोग ,
एक तितली , काली सी ,
उड़ रही थी, बीचोबीच सड़क ,
रिक्शा , गाड़ी , मोटर साथ।
गाड़ियों के रफ़्तार से ,
हवा की नोक झोक से ,
तितली उड़ती झोके से ,
कभी इधर , कभी उधर ,
हैरान -परेशान ,
जान जोखिम में डाल।
शख्स और बच्चा देख रहे सब ,
तितली का संघर्ष ,
मानव के गमनागमन के साधन साथ।
तितली आस- पास चित्कारती ,
अनुनय -विनय करती,
शख्स और बच्चे के पास ,
ऐसा लगता, चंद लम्हे में ,
काली सी तितली मृत।
क्लिष्ट ये क्षण ,
पुरुषत्व विहिन वह शख्स ,
मैं था ,
सोच रहा था ,
इस सोच के साथ
रेलम पेले के ,
पों-पों, चे -चे में ,
खो कर संवदेनहीन हो ,
मर गया था, हर शख्स।
पिकाचु
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