Thursday, December 1, 2016

भ्रम छोड़ रण में


चक्र है अनमोल , भ्रम छोड़ ,
रण  में खड़ा है, रणवीर तू।
सुप्त , गुप्त , लुप्त , कौन ,
यौवन की शाश्वत  मोह माया ,
अभेद को भेद,  के चीर तू।

भोगी , मौनी , योगी ,
कौन  है  , ये भूल मत।
अधीर बन  रण क्षेत्र में  ,
तिलक कर, रणविजय  हो  ।

भेद तू चक्रवह्यु , रुक मत।
आगे बढ़ , ओ अभिमन्यु।
आगाज दे, आवाज कर ,
अचल , अमर , यशस्वी हो।


उठा पटक , लटक  ,झटक
विजयी बन, इन्हें ,फटक ।
आघात दे ओ वीर तू  ,
क्रोध , काम , स्वाद झटक  ,
अटक न मोह, माया  में।



विषम , परिस्थि  या विष भुजंग।
संघार कर, वीर है  , तू  रूद्र बन।
अश्वमेध कर , अभिषेक कर ,
कर्तव्य का प्रतियमान बन ।

निर्भीक  हो  ,
दहाड़ कर ,
चिंघाड़ कर
ललकार दे।
कौन रोके , कौन टोके ,
शत्रु का विनाश कर।

ओत -प्रोत हो ,
अपने  ओज को ,
गति दे ,
इष्ट , लक्ष्य  , अभिप्रेत  को।


सृष्टि को  उपकार दे ,
दुराचारी का शंघार हो  ,
धरती का उद्धार कर,
शांती के  प्रचार में  , ओ धरती पुत्र तू युद्ध का अभिषेक कर ।

पिकाचु




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