चक्र है अनमोल , भ्रम छोड़ ,
रण में खड़ा है, रणवीर तू।
सुप्त , गुप्त , लुप्त , कौन ,
यौवन की शाश्वत मोह माया ,
अभेद को भेद, के चीर तू।
भोगी , मौनी , योगी ,
कौन है , ये भूल मत।
अधीर बन रण क्षेत्र में ,
तिलक कर, रणविजय हो ।
भेद तू चक्रवह्यु , रुक मत।
आगे बढ़ , ओ अभिमन्यु।
आगाज दे, आवाज कर ,
अचल , अमर , यशस्वी हो।
उठा पटक , लटक ,झटक
विजयी बन, इन्हें ,फटक ।
आघात दे ओ वीर तू ,
क्रोध , काम , स्वाद झटक ,
अटक न मोह, माया में।
विषम , परिस्थि या विष भुजंग।
संघार कर, वीर है , तू रूद्र बन।
अश्वमेध कर , अभिषेक कर ,
कर्तव्य का प्रतियमान बन ।
निर्भीक हो ,
दहाड़ कर ,
चिंघाड़ कर
ललकार दे।
कौन रोके , कौन टोके ,
शत्रु का विनाश कर।
ओत -प्रोत हो ,
अपने ओज को ,
गति दे ,
इष्ट , लक्ष्य , अभिप्रेत को।
सृष्टि को उपकार दे ,
दुराचारी का शंघार हो ,
धरती का उद्धार कर,
शांती के प्रचार में , ओ धरती पुत्र तू युद्ध का अभिषेक कर ।
पिकाचु
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