Friday, October 28, 2016

रिश्तो का त्यौहार



रिश्तो का त्यौहार

सुना कभी था ,
हमने - तुमने।
रिश्तो की गर्माहट ही
पर्व और त्यौहार है

सोच तो अपना,
हो गया बेगाना।

दादा - दादी,
नाना -नानी,
अब तो हो गए,
एक अफ़साने।

क्यों हम- क्यों हम
काका -काकी,
भैया - भाभी,
बड़े छोटे को,
भूल गए है।

जाना किनको,
इनसे मिंलने,
समय कहा है,
अपनों को।

 क्यों भौतिकवाद में ,
घुल - मिलकर,
रिश्तो का हम,
चूक चुके है।

परवाह किसे है ,
चाह किसे है ,
अपना कौन पराया है।

भूल गए,हम सब,
देखो , फिर भी हम,
रिश्तो की इस,
बंजर सी धरती पर ,
ये कैसा त्यौहार मना रहे है।

ये कैसा त्यौहार मना रहे है . .......
पिकाचु
 

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