Sunday, October 16, 2016

त्योहार

त्योहार:-

त्योहार का मौसम आया ,
बाजार पट चुका है  सौदों से ,
खरीदार पट पड़े है रस्तो पे ,
गलियो , दुकानों और इन्टरनेट पे।

त्योहार ढूंढ रहा हु मैं ,
सुन रखा  है , होता है ,
ये दिल दिमाग चाक  जिगर में।
बड़े , बूढ़े के आशीर्वादों में ,
बच्चो के खिलखिलाहट में।

आज तो त्योहार सौदों में है ,
लोगो के क्रय शक्ति में है
दुकानों के कोलाहल में है ,
प्रकृति के दोहन में है।

सुना था !
त्योहार तो प्यार है ,
परिवारों के मिलन  के
इजहार , इकरार और तकरार  है।

त्योहार तो बहता कलकल पानी है ,
दुख - सुख , सच्चाई - बुराई ,
एकजुट संयम एकता का प्रतीक है।

हाय ये क्या !
त्योहार तो अब सिर्फ दुकानों के
छूट के प्रस्तावो तक ही सीमित है।

त्योहार तो अब व्यापार  है ,
बेचने खरीदने का बिक्री प्रस्ताव है ,
भावशून्य भावहीन  बेजान धंधा है ,
मूल में छिपा जिसके ,
सिर्फ और सिर्फ चंद आकाओ का लाभ  है।

                                  " पिकाचू"






No comments:

Post a Comment