एक रुमाल थी,
एक हसीना की,
दीवाने के हाथो में।
शोख सी हसीना ,
निर्दोष सा दीवाना ,
तन्हाई के आलम में ,
ग़मख़्याली के
जुगाली में लगे थे।
एक कप कॉफ़ी का ,
बड़े चाह से ,
लुत्फ़ उठाते थे।
दोनों जब कभी
रश्क कर जाती थी दुनिया।
आह निकले दीवाने की।
कभी ये हसीना ,
अपनी लबो से चुम कर ,
ब्लैक कॉफी भी
मीठी कर जाती थी।
आज आलम यह है,
समा भी है, परवाना भी है ,
साथ में मीठी कॉफी भी है ,
न जाने क्यों,
हसीना की इनायत जफ़ा है।
क्यों जुदा हो ,
सदा कर गई ,
दीवाने को।
हल ये दास्तान ,
किसको पता था ,
बस साथ था एक रुमाल ,
हसीना का,दीवाने के हाथो में।
बचा क्या था ,
अक्स , अफ़सोस या अलाप।
कॅपकॅपा रहा था , दीवाना,
ठण्ड या लथपथ पसीने से।
पास न था कोई,
हमसाथ था बस एक रुमाल।
हसीना का ये खबर,
एक तमाचा था ,
अफ़सोस प्यार तो,
एक तगादा था ,
बिक चूका है आज वह।
हसीना किसी और परवाने की
हूर हो रही है।
चाँद दिनों की मेहमान हू ,
अब मैं किसी और की जान हू।
दीवाना , बेगाना सा हुआ ,
बदहवास हो आग्रह किया ,
चलो भाग चले , कही और चले।
हसीनो का जलवा देखो ,
आग बबूला हो बोली ,
मोहब्बत तो ,
कुछ दिनों की सौगात है।
जीवन तो सुक़ून से बिताने दो
इज्जजत परिवार की, निभानी दो ।
दीवाने के हाथो में रुमाल था ,
रोश में सोच न था।
बस संभाल कर रखा ,
वो रुमाल , सोचकर
किसी दिन हसीना का,
बहते हुए अक्स से गीली करेगा।
आज दीवाने के हाथो में ,
साथ रहता,जो हमसाये सा।
बटुए के एक कोने में,
न जाने वह रुमाल न था।
न जाने क्यों दीवाने ने ,
फ़ेंक दिया आज ,
एक रुमाल को,
एक रद्दी के टोकरी में।
खास था वह लम्हा।
मैं ही वो दीवाना हु ,
आज खुद से खुद
पूछ रहा हू ,
क्यों फ़ेंक दिया,
उस , एक रुमाल को
एक , रद्दी के टोकरी में।
पिकाचु
एक हसीना की,
दीवाने के हाथो में।
शोख सी हसीना ,
निर्दोष सा दीवाना ,
तन्हाई के आलम में ,
ग़मख़्याली के
जुगाली में लगे थे।
एक कप कॉफ़ी का ,
बड़े चाह से ,
लुत्फ़ उठाते थे।
दोनों जब कभी
रश्क कर जाती थी दुनिया।
आह निकले दीवाने की।
कभी ये हसीना ,
अपनी लबो से चुम कर ,
ब्लैक कॉफी भी
मीठी कर जाती थी।
आज आलम यह है,
समा भी है, परवाना भी है ,
साथ में मीठी कॉफी भी है ,
न जाने क्यों,
हसीना की इनायत जफ़ा है।
क्यों जुदा हो ,
सदा कर गई ,
दीवाने को।
हल ये दास्तान ,
किसको पता था ,
बस साथ था एक रुमाल ,
हसीना का,दीवाने के हाथो में।
बचा क्या था ,
अक्स , अफ़सोस या अलाप।
कॅपकॅपा रहा था , दीवाना,
ठण्ड या लथपथ पसीने से।
पास न था कोई,
हमसाथ था बस एक रुमाल।
हसीना का ये खबर,
एक तमाचा था ,
अफ़सोस प्यार तो,
एक तगादा था ,
बिक चूका है आज वह।
हसीना किसी और परवाने की
हूर हो रही है।
चाँद दिनों की मेहमान हू ,
अब मैं किसी और की जान हू।
दीवाना , बेगाना सा हुआ ,
बदहवास हो आग्रह किया ,
चलो भाग चले , कही और चले।
हसीनो का जलवा देखो ,
आग बबूला हो बोली ,
मोहब्बत तो ,
कुछ दिनों की सौगात है।
जीवन तो सुक़ून से बिताने दो
इज्जजत परिवार की, निभानी दो ।
दीवाने के हाथो में रुमाल था ,
रोश में सोच न था।
बस संभाल कर रखा ,
वो रुमाल , सोचकर
किसी दिन हसीना का,
बहते हुए अक्स से गीली करेगा।
आज दीवाने के हाथो में ,
साथ रहता,जो हमसाये सा।
बटुए के एक कोने में,
न जाने वह रुमाल न था।
न जाने क्यों दीवाने ने ,
फ़ेंक दिया आज ,
एक रुमाल को,
एक रद्दी के टोकरी में।
खास था वह लम्हा।
मैं ही वो दीवाना हु ,
आज खुद से खुद
पूछ रहा हू ,
क्यों फ़ेंक दिया,
उस , एक रुमाल को
एक , रद्दी के टोकरी में।
पिकाचु
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