Friday, December 23, 2016

बाप रे बाप , क्या हो रहा है

बाप रे बाप , ये क्या हो रहा है ,
अपना काम खुद करो ,
बच्चे नहीं हो , अब हो बड़े ,
बाप का बोझ , कुछ तो ढो ,
समझा रहा था कौन ,
एक बाप , एक बेटे  को।

बाप रे बाप , ये क्या हो रहा है ,
वही बाप , गरजा ,
अपने बाप को।
बुढे हो, सठिया गये हो ,
खाना खाओ , जाकर  सो।

बाप रे बाप , क्या हो रहा है ,
बाप का बाप और  ,बेटा , बाप का  ,
कैसा  है  ये , खेला।
कौन है श्रवण , कौन है दुर्योधन ,
कौन है  धृतराष्ट्र , कौन है पितामह।
भैया ये तो ,
रफूचक्कर होते वक्त का खेल,
है सारा।


बाप रे बाप ,
किसे सुनाओ , किसे बताओ ,
घर घर की है यही कहानी।
नए वक्त की , नई रवानी ,
शून्यता , अधिरता के ,
है, ये पुजारी ।

बाप रे बाप ,
समझ से ही है , ढीठ है सारे ,
हर साख पे बैठा, है ,यहाँ  ,
इंटरनेट के ज्ञाता।

बकबक करते ये ,
काठ के लल्लू ,
बनते जैसे ,
विश्वकोश के प्रकांड पंड़ित।

बेटा , बाप , और बाप का बाप
किसने की है गलती भैया।
थानेदार जब है स्वार्थ है भैया।
भस्मासुर बन ये खेल रचाया।

मंझधार में फंसे है सारे ,
खोज रहे है केवट सारे।
बोल रहे है, सारे मिलकर ,
ये  अविश्वास के खेल में।
भैया ,
बाप रे बाप , क्या हो रहा है।

पिकाचु









No comments:

Post a Comment