Thursday, December 22, 2016

मेरा नाम शुमार नहीं

अरसा है, तरशा  हु ,
गमजदा  हो खुद में,
वर्षो से न  बरशा हु ।

छोड़ने ,तोड़ने ,मरोड़ने।
कि ख्वाहिश न  थी ,
बुत सा खडा ,
क्यों मैं , ऐ  खुदा,
झेलता ,
दावानल , मूषलाधर , विभीषिका।

एक दिन सब्र ने जवाब दी ,
पूछा , ऐ  खुदा, नेकबंद हु ,
फिर क्यों सजा दी।

नेमत क्या इतनी है ,
ऐ  खुदा,
जरा जरा मेरा ये ,
जमी में मिलने का इन्तेजार ही  ,
इनायत है आपका।


एक  गज जमीन की दरकार  नहीं ,
एक  दमड़ी की सरोकार नहीं ,
एक  इल्तेजा  है ,
क्या खता है कि ,
वक्त की  बुलंदियों में,
कभी मेरा नाम शुमार नहीं।

पिकाचु  








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