अरसा है, तरशा हु ,
गमजदा हो खुद में,
वर्षो से न बरशा हु ।
छोड़ने ,तोड़ने ,मरोड़ने।
कि ख्वाहिश न थी ,
बुत सा खडा ,
क्यों मैं , ऐ खुदा,
झेलता ,
दावानल , मूषलाधर , विभीषिका।
एक दिन सब्र ने जवाब दी ,
पूछा , ऐ खुदा, नेकबंद हु ,
फिर क्यों सजा दी।
नेमत क्या इतनी है ,
ऐ खुदा,
जरा जरा मेरा ये ,
जमी में मिलने का इन्तेजार ही ,
इनायत है आपका।
एक गज जमीन की दरकार नहीं ,
एक दमड़ी की सरोकार नहीं ,
एक इल्तेजा है ,
क्या खता है कि ,
वक्त की बुलंदियों में,
कभी मेरा नाम शुमार नहीं।
पिकाचु
गमजदा हो खुद में,
वर्षो से न बरशा हु ।
छोड़ने ,तोड़ने ,मरोड़ने।
कि ख्वाहिश न थी ,
बुत सा खडा ,
क्यों मैं , ऐ खुदा,
झेलता ,
दावानल , मूषलाधर , विभीषिका।
एक दिन सब्र ने जवाब दी ,
पूछा , ऐ खुदा, नेकबंद हु ,
फिर क्यों सजा दी।
नेमत क्या इतनी है ,
ऐ खुदा,
जरा जरा मेरा ये ,
जमी में मिलने का इन्तेजार ही ,
इनायत है आपका।
एक गज जमीन की दरकार नहीं ,
एक दमड़ी की सरोकार नहीं ,
एक इल्तेजा है ,
क्या खता है कि ,
वक्त की बुलंदियों में,
कभी मेरा नाम शुमार नहीं।
पिकाचु
No comments:
Post a Comment