Friday, December 9, 2016

छड़ी बन हम-तुम

लहर है लहर ,
प्यार तो तेरा,
था , एक जहर।

कहर है कहर ,
तेरी हुस्न का था  ,
ये कहर।

मौजू हु मैं ,
साहिल हु मैं ,
फाजिल हु मैं ,'
ये कैसी अहम में ,
घायल थे, हम।

ये ग्रहण था, कैसा।
हम तुम तो लड़ते ,
बुझा  दी जवानी ,
झुलसा दी रवानी ,
आबो हवा की , गर्मी  में क्यों।

चले हम तुम कब।
हाथो में हाथ ,
पाके मुहब्बत के ,
सच्चे जज्बे  के साथ।

कमर थी झुकी ,
नजर थी बुझी,
कोई न था जब।
तब  छड़ी बन हम-तुम,
हर वहम को मिटा,
हर अहम को हटा ,
चले एक दूजे  के हो ,
हर डगर पे साथ।

मुहब्बत का तराना,
गाते हुए ,
लहरो के सहारे,
डगमगाते हुए ,जिंदगी की ,
आखरी पड़ाव पे  ,
हर सितम को भुला ,
चले हम तुम साथ।
बस चले हम तुम साथ।

पिकाचु




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