Tuesday, May 24, 2016

मेडिकल चेकअप

मेडिकल चेकअप 
वक्त की कमी आजकल हर कोई को रहती है पर हमारा अनुरोध है जरा समय निकाल  कर पढ़े सोचे और भूल जाये।  

यह किसी की व्यक्तिगत घटना नहीं है , यह हर किसी के जीवन में घटता है।  मेरे जीवन में भी घटा है। 

क्या कहु पेट में दर्द हो रहा था  कई दिनों से , मैं  जयपुर में था बच्चे के साथ अकेला , वक्त नहीं मिला की दर्द भी हो रहा है , सोचने का।  सोचा कब मैंने जब मेरे एक मित्र का लिवर ट्रांसप्लांट होने का सुना।  मुझे भी लगा कही मेरा लिवर तो नहीं गया।  ऐसा लगता था की लिवर कभी ऊपर हो रहा है कभी निचे।  कभी दर्द किडनी में होता तो कभी अपेंडिक्स जैसा होता।  सोच सोच के परेशान हो रहा था।  बच्चा भी मेरे साथ था , गुस्से में मैं उसे भी डाँट दे रहा था , वो भी पिलपिला उठता था गुस्से से  , छोटा है अभी कुछ संस्कार बचे  है , इसलिए आँखे लाल कर शांत हो जाता है ।  इसी उहा पोह  में मैंने सोचा चलो डेल्ही चलता हु ,वंही चेकअप करा लूंगा. 

ट्रेन पकड़ी और पहुंच गए देल्ही के सबसे अच्छे  हॉस्पिटल में चेक कराने।  बच्चे को दोस्त के घर छोड़ा  और चला चेकअप कराने। जीवन  में पहली बार ऐसे बड़े हॉस्पिटल में आया था , तो ऐसा लगा की मै , किसी बड़े पांच सितारा होटल में पहुंच गया हुँ , देखा तो निचे में बड़े बड़े फ़ूड आउटलेट है , मोबाइल की शॉप है और ऊपर में हॉस्पिटल।  

हॉस्पिटल में व्यक्ति  के  जरुरत की  हर सुविधा है.  जी हाँ  इलाज भी बहुत अच्छा है , ऐसा सभी लोग बोलते है , पर मैंने देखा की लिपस्टिक लगाए हुए  अटेंडेंट हर काउंटर पर उपलब्ध थी, हमारी सहायता को।  सेवा और सहायता में वो पीछे नहीं थी परन्तु जब वो हमें डॉक्टर के पास ले जाते तो , डॉक्टर उनसे बड़े मुस्करा के बात करते और हमें देखते ही सोचनीय मुद्रा में आ जाते।  मैंने सोचा चलो काला हूँ  तो ऐसा होगा :  पर नहीं , अन्य पेशेंट्स के साथ भी डॉक्टर्स ऐसे ही थे.  मन को थोड़ी शान्ति मिली। 

 बीस तरह के टेस्ट कराने  थे तो पूरा दिन निचे ऊपर करते ही गुजर गया।  ऐसा लग रहा था की किसी कारखाने के लाइन प्रोसेस सिस्टम में हमारी एंट्री  हो गई है और हम एक मशीन से दूसरे  मशीन पे गुजरते हुए जा रहे  है। 

मुझे यह सोचने पे मजबूर होना पड़ा की आज की मेडिकल सिस्टम में दो ही चीज  काम देता है , वो है पैसा और दूसरा है बड़ी बड़ी कम्प्यूटर्स और मशीने।  ऐसे में डॉक्टर्स और कम्पौंडर्स  मशीन के तरह हो जा रहे है।  संवेदनहीन।  संवेदनहीन।  संवेदनहीन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, . 

क्या सही है या गलत मैं आप पर छोड़ता हू। 
आप सोचे जरूर क्योकि देश में अभी भी एक बहुत बड़ा वर्ग है जो इन सुविधाओं से अलग थलग है।  क्या यह सोच रख कर क्या हम इस वर्ग की सेवा कर पाएंगे। 












Sunday, May 22, 2016

www.complaintcare.com

Awake your self for your rightful grievances