ये सच है , आज मैं परेशान हु ,
हैरान हु , जिंदगी से।
मैं परेशान हु , क्यों रुका हू।
वक्त , मौसम , महीने बदले।
जिंदगी यु ही , नाराज हो दुखी है।
मैं परेशान हु।
निर्जीव, जड़वत हु क्या मैं ,
सजीव हु ,मैं परेशान हु।
स्थिर है जिंदगी , अधीर हु मैं ,
सोचता हु की , मैं हु की नहीं।
मैं परेशान हु , मैं विस्मित हु।
आपत्ति है वक्त से,
क्यों अपमानित हु।
दुःख , व्यथा , क्लेश,
क्या इनसे ,
अपना जन्मो का नाता है।
मैं परेशान हु , क्यों मैं तम हू।
मुस्कुराने को क्यों व्याकुल हु।
मैं इंसान हू , न कोई मिथ्या हू।
मैं परेशान हू ,
मैं नीति से चला , अब तू ही बता,
अवनति फिर क्यों साथ हो चला।
मैँ अविरल हु , मैं बहता हु ,
मैं , मैं ,में ही अब रहता हु।
दुःख सुख का सरोकार नहीं ,
उचित अनुचित , विधि विधान,
अब इनका आधार नहीं।
मैं परेशान नहीं ,मैं दृढ़ हु।
मैं मुरीद हु , उस प्रीत का,
जहाँ संगम हो विशुद्ध ,
प्यार का।
पिकाचु
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