Wednesday, November 23, 2016

मैं दृढ़ हु


ये सच है , आज मैं परेशान हु ,
हैरान हु , जिंदगी से।




मैं परेशान हु , क्यों  रुका  हू।
वक्त , मौसम , महीने बदले।
जिंदगी यु ही , नाराज हो  दुखी  है।
मैं परेशान हु।

निर्जीव, जड़वत हु  क्या मैं ,
सजीव हु ,मैं परेशान हु।
स्थिर है जिंदगी , अधीर हु मैं ,
 सोचता हु की , मैं हु की नहीं।


मैं परेशान हु , मैं  विस्मित  हु।
आपत्ति है वक्त से,
क्यों अपमानित हु।
दुःख , व्यथा , क्लेश,
क्या इनसे ,
अपना जन्मो का नाता है।

मैं परेशान हु , क्यों  मैं तम हू।
मुस्कुराने को क्यों व्याकुल हु।
मैं इंसान हू , न कोई मिथ्या हू।
मैं परेशान हू ,
मैं नीति से चला , अब तू ही बता,
अवनति फिर क्यों साथ हो चला।

मैँ अविरल हु , मैं बहता हु ,
मैं , मैं ,में ही अब रहता हु।

दुःख सुख का सरोकार  नहीं ,
उचित अनुचित , विधि विधान,
अब इनका आधार नहीं।

मैं परेशान नहीं ,मैं दृढ़ हु।
मैं मुरीद हु , उस  प्रीत का,
जहाँ संगम हो विशुद्ध ,
प्यार का।

पिकाचु
https://complaintcare.blogspot.in/


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