चुप रहना , कुछ न कहना ,
मन मेरा , मौजा ही मौजा।
भीड़ में मैं अकेला , सोच रहा ,
क्यों कुछ न कहता , क्यों मैं अकेला।
न जाने फिर भी क्यों ,
मन मेरा मौजा ही मौजा।
झुण्ड में पेशेवर ,
गर्म हवा , विषय गंभीर ,
चर्चा परिचर्चा ,शास्तार्थ ,
क्या ये बहस मुनासिब।
सोचता मन ,
चुप रहना , कुछ न कहना ,
मन मेरा , मौजा ही मौजा।
पास दूर होते निष्कर्ष ,
क्रोध , कटुता , अतिक्रमण,
विचारो से उतर द्वेष विद्वेष का माहौल।
मन का मैल से , बड़ा होता गर्म गुब्बार।
फट पड़ा पेशेवर मजदूर ,
गिरह खोल , गिरेबान चढ़ा तैश में आ ,
बकवादी बन करता , आबोहवा दूषित।
सोचता मन ,
चुप रहना , कुछ न कहना ,
कितना अच्छा , स्वयम आनंद ,
मन मेरा , मौजा ही मौजा।
पिकाचु