Monday, December 12, 2016

काश ,मैं इंसानियत बसा होता

काश मैं होता खाश ,
जिंदगी में जब  होता ,
कोई संज्ञा , कोई क्रिया और,
एक विशेषण  का साथ।

काश किस्मत होती साथ ,
वक्त लिखता अपनी ,
दोनों  हाथो ,से एक साथ।

काश खेल में नहीं होते ,
इतने शह मात की  सांप सीढ़ी,
होता एक पाशा ,जिसकी संख्या,
काश हथेलियो की मुठीबन्द में,
मनमुताफिक रहता,  अपने पास ।


काश ,मैं एक बुत होता ,
काश मैं एक  संवेदना होता ,
काश , मैं ही मैं होता ,
तो क्या ,
जीत , हार , ख़ुशी ,
गम , धोखा , बेखुदी  नहीं होता।

काश  एक ऐसा जमी होता ,
जहाँ कोई कमी नहीं होता ,
जहाँ  मजहब , जात पात ,
या इंसान का रंग  नहीं होता
बस, इंसानियत  बसा  होता।

काश मेरी तलाश , में,
आपका साथ होता , तो
ये दुनिया सभी के लिए ,
खुशियो  का सौगात होता।

पिकाचु

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