Saturday, November 19, 2016

चलो मैं हारा , चलो तुम जीती


रिश्तो की ख्वाहिश , अनंतर बसी है ,
कुछ मेरे मन में , कुछ तेरे मन में।

चलो हम तुम ,
कुछ मुकम्मल  करते है,
इस प्रतिकूल में,कुछ अनुकूल करते है।

कुछ अभिनव , कुछ अद्भुत ,
चलो हम तुम, निर्विरोध हो,
कुछ नूतन सा  अफसाना ,
थोड़ा तुम , थोड़ा हम ,
चलो मिलकर, रचते है।

कुछ लम्हा पास,
हम -तुम ने बिताया ,
कुछ उसने रुलाया ,
कुछ हमने रुलाया ।
क्यों हम -दोनों ने  ही,
खुद को  यूँ ही, क्यों सताया।
समझती  नहीं वो ,समझता नहीं वो।
थोड़ा तुम समझो , थोड़ा मैं समझू।

पता है तुम्हे , पता है मुझे ,
नाराज हो  तुम  , नाराज हू मैं।
फिर भी ,
पास आने की चाहत में ,
यूँ ही आकुल , है क्यों।
थोड़ा हम, थोड़ा तुम।


कुछ तुम चलो , कुछ मैं चलू ,
कुछ मैं भूलू , कुछ तुम भूलो।
ऐसा कुछ कर,  हम दोनों,
क्यों न हम, ये  गम भूले।
जरा तुम सोचो , जरा मैं सोचु ,
क्यों न हम, ये अहम भूले।


कुछ मेरे मन में है , कुछ तेरे मन में है,
एक दोनों में , दोनों ही बसे है।
ये विनती है, हम तुम से,
चलो मैं हारा , चलो तुम जीती ,
जीवन के रस्ते में,
चलो साथ होकर , सबकुछ  भूलकर
थोड़ा हम चले , थोड़ा तुम चलो।

पिकाचु

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