Saturday, November 5, 2016

हक़ीक़त

वो आज आई सवेरे ,
ख्वाबो में खयालो में ,
पूछा मैंने उससे , क्यों ,
हक़ीक़त में तनहा कर ,
ख्वाबो में रूबरू होते हो।

स्वप्निल सवेरा तो ,
खुदा की बंदिगी है।
इबादत है, रौशनी ,
उजाला है ओज का।

चण्ड , प्रचंड ,
होकर प्रखर तुम,
साहिल की तसवुर का ,
इरादा ,अपने  बाजुओ में ,
तू हमेशा  बुलंद  रख।


पैगाम हमारी ,
तो ये लेते जाओ।
गरूर गैर की बाहो का,
ये तो  अबस है।
इस निगाहबां का काबू तो  ,
जन्नत से जहनूम तक है।


एहसास का टुकड़ा ,
जो टूट कर बिखर गया है ,
बिसरने  का वक्त है।
गिर अगर गए तो
संभलने का वक्त है।

खो न देना बीतते,
हुए लम्हे ,
इस बेगैरत गम में ,
ऐ मेरे हमदर्द ,
तेरी कश्ती का किनारा,
अभी तो बहुत दूर है।


,पिकाचु





  • तसव्वुर= कल्पना, दिवास्वप्न, विचार
  • अबस= लाभहीन, बेकार, व्यर्थ, तुच्छ
  • निगाहबां= रक्षक, देख भाल करने वाला
  • क़ाबू= शक्ति, अधिकार, वश, पकड़
  • बादिया= उजाड़, मस्र्स्थल
  • तारीक= अन्धेरा, धुंधला
  • तर्स= भय, आंतक
  • तबाह= विनष्ट, बिगड़ा हुआ, बुरा, दुष्ट
  • अबस= लाभहीन, बेकार, व्यर्थ, तुच्छ
  • गु़बार= वाष्प, धुंध, फुहार, धूल, दु:ख

  • नादिम= लज्जाशील, नम्र, लज्जित
  • गऱूर= गर्व, घमंड
  • गै़र= अजनबी, परदेसी
  • पैगा़म= संदेश, समाचार, विमश
  • क़ाबू= शक्ति, अधिकार, वश, पकड़

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