रिश्तो का त्यौहार
सुना कभी था ,
हमने - तुमने।
रिश्तो की गर्माहट ही
रिश्तो की गर्माहट ही
पर्व और त्यौहार है ।
सोच तो अपना,
हो गया बेगाना।
दादा - दादी,
नाना -नानी,
अब तो हो गए,
एक अफ़साने।
एक अफ़साने।
क्यों हम- क्यों हम
काका -काकी,
भैया - भाभी,
बड़े छोटे को,
भूल गए है।
जाना किनको,
इनसे मिंलने,
समय कहा है,
अपनों को।
क्यों भौतिकवाद में ,
घुल - मिलकर,
रिश्तो का हम,
चूक चुके है।
परवाह किसे है ,
चाह किसे है ,
परवाह किसे है ,
चाह किसे है ,
अपना कौन पराया है।
भूल गए,हम सब,
देखो , फिर भी हम,
रिश्तो की इस,
बंजर सी धरती पर ,
ये कैसा त्यौहार मना रहे है।
ये कैसा त्यौहार मना रहे है . .......
पिकाचु
पिकाचु