आज की रात , अमावस की रात ,
अँधेरा चौतरफा , आंखे फाड़े देख रहा।
इन्तेजार था मुझे , उस नूर का , जो ,
रौशनी हो रही है , आज किसी और कि।
एक आशा मन में , कही अच्छाई मेरी ,
कही किस्मत का साथ दे ,
तमन्ना दिल कि ,पूरी हो जाये।
थका , लुटा , पीटा , सोच रहा ,
हारने का गम , या गम को हराने की ,
किस राह , इख़्तियार कर रही है जिंदगी।
मुकम्मल जहाँ नहीं , अपने ही सताते है ,
आसमान से अर्श तक , गिरने ,गिराने का खेल ,
बेइंतहा खेलती है जिंदगी।
नाम क्या दे इस बेवफ़ा का ,
जात - पात ,धर्म , अमीरी , गरीबी,
या वफ़ा की शुद्ध बेवफाई।
हम ही मिले थे उनको ,
इस खेल के मैदान में।
मेरे खुदा , कुफ्र का आलम ,
कि इंतहाई है ,
हम ही है क्या , मुसीबतजदा ,
तेरे बेरुखी के पैमाने में।
इजहार था , इकरार था ,
फिर क्यों ,
ये रार , है , औ मौला।
फरिश्ता नहीं , इंसान हु ,
दर्द भी है , गरूर भी है।
औ मौला ,
बंद आँखों से न देख ,
दर पर हू खड़ा , कुछ रहम कर , कुछ रहम कर।
पिकाचु
अँधेरा चौतरफा , आंखे फाड़े देख रहा।
इन्तेजार था मुझे , उस नूर का , जो ,
रौशनी हो रही है , आज किसी और कि।
एक आशा मन में , कही अच्छाई मेरी ,
कही किस्मत का साथ दे ,
तमन्ना दिल कि ,पूरी हो जाये।
थका , लुटा , पीटा , सोच रहा ,
हारने का गम , या गम को हराने की ,
किस राह , इख़्तियार कर रही है जिंदगी।
मुकम्मल जहाँ नहीं , अपने ही सताते है ,
आसमान से अर्श तक , गिरने ,गिराने का खेल ,
बेइंतहा खेलती है जिंदगी।
नाम क्या दे इस बेवफ़ा का ,
जात - पात ,धर्म , अमीरी , गरीबी,
या वफ़ा की शुद्ध बेवफाई।
हम ही मिले थे उनको ,
इस खेल के मैदान में।
मेरे खुदा , कुफ्र का आलम ,
कि इंतहाई है ,
हम ही है क्या , मुसीबतजदा ,
तेरे बेरुखी के पैमाने में।
इजहार था , इकरार था ,
फिर क्यों ,
ये रार , है , औ मौला।
फरिश्ता नहीं , इंसान हु ,
दर्द भी है , गरूर भी है।
औ मौला ,
बंद आँखों से न देख ,
दर पर हू खड़ा , कुछ रहम कर , कुछ रहम कर।
पिकाचु
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