Saturday, October 15, 2016

अकेला : भीड़ में खड़ा मैं

भीड़ में खड़ा मैं ,
बिलकुल अकेला ,
खुद से अनजान ,
खो गया ,
खुद की तलाश में ,
बेसुध हू पड़ा ,
मैं खुद की तलाश में।

तलाश,  क्या अब तो एक लाश हू ,
रौशनी की पराबैगनी किरणों ने,
यू जलाया और यू  सताया कि ,
ज्योति की तरंगो से छिपते,
भीड़ में खड़ा मैं ,
बिलकुल अकेला।

काश भीड़ में तू मेरे साथ,
हाथो में हाथ , हमदम सा ,
मेरा साथ देती जो  ,
आज हम कुछ और होते
तुम भी कुछ और  होते। 

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