Monday, December 5, 2016

व्यवस्था ही यम है

ठण्ड की ठिठुरन में ,
ठिठक ठिठक कर ,
टिक टिक करती समय।

घने कोहरे को चीरते आवाज आई।
घुप सा इंसान , असमंजस में पड़ा।
ठिठका , सोचा चलो कोई तो है।
आवाज पास आई ,
कहा चलो , चल चले ,
तेरा वक्त आ  गया , यम हु मैं।

सिहरन, कंपकपी , डर ,  फिर मैं निडर।
यम का ठिकाना , स्वर्ग , नर्क या धरती।
यम तो  मैं  हु, मेरी  काल यम नहीं, मैं हु।

मैं सोचा , यम मैं तो !
क्यों ठिठका , रुका , चरमराई व्यवस्था में।
जाना है मैं को ,
अविनाशी नहीं , फिर कौन सी व्यवस्था।

व्यवस्था ही यम है , अहम है , विनाशी है।
पश्चाताप , पछतावा , शोक , छोड़ ,
मैं की  जी और  मैं की रक्षा कर।

 पिकाचु 

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