Tuesday, November 1, 2016

ये चलती रेल


सटर, पटर, खटर
आवाज करती है ,
ये चलती  रेल।


ईटा , पत्थर, सीमेंट,
कल ,पुर्जे , कपडे, लते ,
ढोती, ये सरपट रेल।
,

मुसाफिर तो इसका  है ,
सारा देश,
जात - पात,   न
धर्म या भेष ,
कोई भेद न करती ,
ये चलती   रेल।  

सबका साथ - सबका विकास
आदर्शोक्ति है  ,
ये सरपट  रेल।
 
हवा के तेजी से दौड़ती है  ,
दूरियां छोटी करती है ,
हर कोने को जोड़ती है ,
ये चलती   रेल।    


कब, कैसे ,हो गया,  लक्ष्य ,
इसका मुनाफा-खाना !
क्यों नीति में राज -नीति ,
साधती आज ,
ये चलती रेल।


माना इमदाद  है,
साधारण दर्जे की,
आम आदमी की यात्रा।
फिर क्यों, बारबार टिकट
पर प्रदर्शित कर
हमें इमदादी बताकर ,
अपने  रहमदिली और
रहमोकरम का ढिंढोरा
बजाकर , खुद क्यों ?
रहनुमा बनती,
 ये चलती रेल।

क्यों खास, ये
धीरे धीरे  बनती ,
ये चलती रेल।

क्यों हमारी,
कमर तोड़ती ,
ये चलती रेल।

क्यों टिकट ,
कभी मिलते नहीं?
फिर भी वजीर साहेब ,
कभी बघारते, थकते नहीं ,
ये  चलती रेल।


क्यों , आधुनिकता के नाम पर,
गति , प्राद्योगिकी, निवेश को
तरसती ये चलती   रेल।

क्यों , निजीकरण के दौर में ,
समाजीकरण का शऊर
भूलती ,ये चलती रेल।

क्यों अवर होती जाती ,
हमारी ये चलती रेल।

आप क्यों नहीं बताते ,
कहा लिए जाते ,
हमारे ये चलती रेल।



पिकाचु
                         


इमदाद-  सब्सिडी मदद पाने वाला
इमामत-नेतृत्व



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