Tuesday, January 31, 2017

मन मेरा मौजा ही मौजा


चुप रहना , कुछ न कहना ,
मन  मेरा , मौजा ही मौजा।

भीड़ में मैं अकेला , सोच रहा ,
क्यों  कुछ न कहता , क्यों  मैं  अकेला।
न जाने फिर भी क्यों ,
मन  मेरा  मौजा ही मौजा।

झुण्ड में पेशेवर ,
गर्म हवा , विषय गंभीर ,
चर्चा परिचर्चा ,शास्तार्थ ,
क्या ये  बहस मुनासिब।

सोचता मन ,
चुप रहना , कुछ न कहना ,
मन  मेरा , मौजा ही मौजा।

पास दूर होते निष्कर्ष ,
क्रोध , कटुता , अतिक्रमण,
विचारो से उतर  द्वेष विद्वेष का माहौल।
मन का मैल  से , बड़ा होता गर्म गुब्बार।
फट पड़ा  पेशेवर मजदूर ,
गिरह खोल , गिरेबान चढ़ा तैश में आ ,
बकवादी बन करता , आबोहवा  दूषित।

सोचता मन ,
चुप रहना , कुछ न कहना ,
कितना अच्छा , स्वयम आनंद ,
मन  मेरा , मौजा ही मौजा।

पिकाचु 

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