मैं अजनबी हु ,
तटस्थो के मरुस्थल में खोजता ,
अपनी जमी।
मैं वो अजनबी हु।
मैं बवंडर हु ,
हवाओ के वेगो को थामे हुए ,
निरंतर खड़ा।
दबाव के समुन्दर को छितराते हुए ,
जीवन को समर्पित।
मैं बवंडर हु।
मैं पथिक हु ,
न सफर का पता ,
न रास्ते का पता ,
न मंजिल की उम्मीद ,
बस चले जा रहा हु।
मैं पथिक हु।
मैं भूख हु ,
मेरी क्षुधा में सिर्फ मैं।
मैं भूख हु।
पिकाचु
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