ये क्या हो रहा है।
मन कुछ ठहर सा ,
सहम सा ,
क्यों हो गया है।
गम क्या, ख़ुशी क्या ,
जीत क्या, हार क्या।
जज्बात क्यों ,
ठिठक से गये है।
ये क्या हो रहा है,
ये क्यों हो रहा है ,
अंदर ही अंदर ,
अपना जीवन,
क्यों , उलझ के
सुलग सा गया है ।
जीवन का अभ्यास ,
तनिक भी रफीक न रहा।
इंसान अपना मगरूर,
संगदिल,मशगूल
आवारा , काफिर ,
क्यों हुए जा रहा है।
ये क्या हो रहा है।
अबूझ पहेली,
क्यों,
जीवन हम सब का ,
रफ्ता रफ्ता हुए जा रहा है ।
पिकाचु
मन कुछ ठहर सा ,
सहम सा ,
क्यों हो गया है।
गम क्या, ख़ुशी क्या ,
जीत क्या, हार क्या।
जज्बात क्यों ,
ठिठक से गये है।
ये क्या हो रहा है,
ये क्यों हो रहा है ,
अंदर ही अंदर ,
अपना जीवन,
क्यों , उलझ के
सुलग सा गया है ।
जीवन का अभ्यास ,
तनिक भी रफीक न रहा।
इंसान अपना मगरूर,
संगदिल,मशगूल
आवारा , काफिर ,
क्यों हुए जा रहा है।
ये क्या हो रहा है।
अबूझ पहेली,
क्यों,
जीवन हम सब का ,
रफ्ता रफ्ता हुए जा रहा है ।
पिकाचु
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