कटी रे कटी ,
चिल्लाये सारे,
नजर घुमाया , छत पर देखा ,
उतरण , मकरसक्रांति,
में मचा है,
कटी पतंग का रेलम पेला।
खुशीया है , चारो ओर।
पीहू , बैशाखी , पोंगल , लोहड़ी।
उड़ा के सारे गम।
लगे है ,
बच्चो के संग ,
कटी पतंग के उधम में,
हम।
उम्र का पारा , जोड़ो का दर्द ,
झुकी कमर , धुंधली नजर ,
सबको उड़ाकर ,
खो गये हम,
नन्हे मुन्हे ,बच्चो के संग।
झाड़ लिया और दौड़ पड़े ,
कटी जिंदगी, हारी किस्मत ,
भूल के सब ,
दौड़ पड़े हम।
लूटने चले , अपने जैसी,
किस्मत के हिचकोले खाते ,
कटी पतंग,
रे भैया,
कटी पतंग ।
पिकाचु
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