Friday, January 13, 2017

कटी पतंग


कटी रे कटी , 
चिल्लाये सारे,
नजर घुमाया , छत पर देखा , 
उतरण , मकरसक्रांति,
में मचा है, 
कटी  पतंग  का रेलम पेला। 

खुशीया  है , चारो ओर। 
पीहू , बैशाखी , पोंगल , लोहड़ी। 
उड़ा  के सारे गम। 
लगे है ,
बच्चो के संग ,
कटी पतंग के उधम में,
हम। 

उम्र का पारा , जोड़ो का  दर्द ,
झुकी कमर , धुंधली नजर ,
सबको उड़ाकर  , 
खो गये हम, 
नन्हे मुन्हे ,बच्चो के संग। 

झाड़ लिया और दौड़ पड़े ,
कटी जिंदगी, हारी  किस्मत ,
भूल के सब ,
दौड़ पड़े हम। 
लूटने चले , अपने जैसी,
किस्मत के हिचकोले खाते , 
कटी पतंग,
 रे भैया,
कटी पतंग  । 

पिकाचु 








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