Tuesday, January 3, 2017

खुदगर्ज ,खुदा ,खुदगर्जी बन

चौसर की बिसात बिछी है ,
पासा पास है , चलने को ,
कौन सी चाल, चल  चलु ,
कर्म , ज्ञानी , कुकर्म या अज्ञानी।

जनत या जलालत ,
कुफ्र या  आदमियत ,
फिक्र किसे ,
न मेरे लिए न तेरे लिए।

कौन यहाँ ठहरा है,
खुदगर्ज ,खुदा ,खुदगर्जी बन।
हर शख्स यहाँ प्यासा है ,
गर्म लहू पिने के लिए।

ताज तख़्त के चाह में,
मुकाबला किससे ,
मूक , बधिर , मौन ,
मर्महीन ,गौण, मष्तिष्क से।

चुरुट , चुरमुर ,अवपथ की राह में ,
किस अग्निपथ की गरज में ,
धूल उड़ाता , निकल पड़ा ,
इंसान अपना ,
बुदबुद सा मीर बनने।

पिकाचु




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