Thursday, January 26, 2017

हुस्न


हुस्न की चाह ,
छुपाये नहीं छुपता।

दिल लगाया है हुस्न से ,
धड़कनो को थमने,
का एहसास  नहीं होता ।

दिल तो मानता नही , चंद लम्हे ही चाहता है ,
हुस्न की ,
पर हुस्न है कि ,
मानता ही नहीं।

हसीना का हुस्न क्या ,
आशिक़ की आशिक़ी ,
दीवाना का दीवानापन।
और क्या ?
एक लाईलाज रोग।

खड़ा था हुस्न के चौराहे पे,
ले  रहा था ,
गुजरे हुए हुस्न का  एहसास।
लगा था रेला हुस्न का ,
चाट , गुपचुप के रेले पे।

हुस्न अब बस एहसासों  के,
हम साये में ही रह गया है।
हुस्न अब , गुपचुप,
चुप चुप खाकर ,
भई गुब्बारा हो गया ।

वक्त के एहसासों में
हुस्न हुस्न करता फिर रहा  हु ,
बुढौती है,
फिर भी हुस्न को तलाशता फिर रहा हु।

पिकाचु



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