Saturday, January 7, 2017

संवेदनहीन हो चला

बुरे के साथ बुरा ,
भले के साथ भला ,
हिसाब - किताब करने ,
मैं ,चल पड़ा,
अब मैं ,चल पड़ा ।

मुरब्त नहीं ,
कर्म कर्तव्य में ,
इंसानियत का ज्ञान ,
मैं ,भूल चला ,
अब मैं  ,भूल चला।

निकल पड़ा,
अब मैं ,
बही खाता करने ,
संवेदनहीन हो,
मैं निकल पड़ा ,
अब, मैं निकल पड़ा।


क्या दीन , दुनिया,
अब ,
दिन हो या रात ,
जमी हो या आकाश ,
वक्त के साथ ,
मैं ,बदल चला,
अब मैं ,बदल चला।

प्यार या नफरत,
फसल कैसी भी हो ,
सबकी कटाई करने,
मैं  निकल पड़ा  ,
अब मैं निकल पड़ा।

गांठ बांध ली ,
अब मैंने।
न दया , न मोह ,
न क्रोध , न लालच ,
न सत्ता की अभिलाषा ,
न अपना न पराया।
सभी की आहुति दे ,
जैसे तो तैसा करने ,
मैं चल पड़ा,
अब मैं चल पड़ा।

पिकाचु

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