Sunday, January 22, 2017

दिल का आंगन खुला है मेरा:-

घर आंगन खुला है मेरा ,
इन्तेजार है ,  तेरा दशको से,
पल दो पल का ,पतझर छोड़,
प्यार का कोपल, आने दे।

मन मेरा ढूंढ रहा है ,
फिजा में फूलो की, भीनी भीनी  खुशबु।
खुले  आंगन में खोज रहा हु  ,
खोया अपना संसार जहाँ।

घर आंगन खुला है मेरा ,
रुके वक्त को  दौड़ लगाने ।
रुके रहोगी,  तुम कब तक निर्मोही ,
समय का  लेखा-जोखा, ठहरा मेरा।

बाट जोह रहा, और भी कोई ,
दिल का आंगन खुला कर अपना।
अपराध  तो  तेरा अछम्य है।
दुआ है उसका, छोड़ दिया।

घर आंगन  खोलो अपना ,
हवा का झोंका आने दो।
जीवन का बसंत जो बिता ,
लेख जोखा, बचा है ,अभी अश्को का।
पतझर जाये ,
खुले आंगन में वसन्त तो आने दो।

पिकाचु




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