घर आंगन खुला है मेरा ,
इन्तेजार है , तेरा दशको से,
पल दो पल का ,पतझर छोड़,
प्यार का कोपल, आने दे।
मन मेरा ढूंढ रहा है ,
फिजा में फूलो की, भीनी भीनी खुशबु।
खुले आंगन में खोज रहा हु ,
खोया अपना संसार जहाँ।
घर आंगन खुला है मेरा ,
रुके वक्त को दौड़ लगाने ।
रुके रहोगी, तुम कब तक निर्मोही ,
समय का लेखा-जोखा, ठहरा मेरा।
बाट जोह रहा, और भी कोई ,
दिल का आंगन खुला कर अपना।
अपराध तो तेरा अछम्य है।
दुआ है उसका, छोड़ दिया।
घर आंगन खोलो अपना ,
हवा का झोंका आने दो।
जीवन का बसंत जो बिता ,
लेख जोखा, बचा है ,अभी अश्को का।
पतझर जाये ,
खुले आंगन में वसन्त तो आने दो।
पिकाचु
इन्तेजार है , तेरा दशको से,
पल दो पल का ,पतझर छोड़,
प्यार का कोपल, आने दे।
मन मेरा ढूंढ रहा है ,
फिजा में फूलो की, भीनी भीनी खुशबु।
खुले आंगन में खोज रहा हु ,
खोया अपना संसार जहाँ।
घर आंगन खुला है मेरा ,
रुके वक्त को दौड़ लगाने ।
रुके रहोगी, तुम कब तक निर्मोही ,
समय का लेखा-जोखा, ठहरा मेरा।
बाट जोह रहा, और भी कोई ,
दिल का आंगन खुला कर अपना।
अपराध तो तेरा अछम्य है।
दुआ है उसका, छोड़ दिया।
घर आंगन खोलो अपना ,
हवा का झोंका आने दो।
जीवन का बसंत जो बिता ,
लेख जोखा, बचा है ,अभी अश्को का।
पतझर जाये ,
खुले आंगन में वसन्त तो आने दो।
पिकाचु
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