Sunday, January 1, 2017

सच और झूठ की ,
दो पाटो के बीच फँसी है,
दुनिया का तकरार और इकरार,
का सच ।

मर्द और औरत की ,
जिस्मानी प्यास की  आश में ,
बुझ  गई है जीवन,
और इसकी सर्जनशीलता।

देश विदेशज सा हो गया ,
मित्र भी शत्रु है आज।
बम गिराकर , नरसंघार कर,
अपकार , उपकार  भूल गए है, सब।

इंसान  का कोई मान  नहीं है,
इंसान क्यों ,  इतना खुदगर्ज है।
धूल में लोटे  , काले मटमैले ,
नवजात से भी , इतना इसको ,
बैर क्यों है।


टिश उठी है , बेकाबू दिल में ,
लब डब धड़कन , शोर में तब्दील ।
सिसकार उठा, हर मानव जब  ,
कितने चीत्कार ,
ऐ इंसान तू  , झेलेगा अब।


ह्रदय आघात भी बिसर गया है ,
आज का मानव क्यों इतना ,
भटक गया है।
दो पाटो के बीच ,
दुनिया क्यों इतना सिमट गया है।


पिकाचु 

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