Thursday, January 5, 2017

हिसाब - किताब

क्यों तुमने  ,
यु ही मेरे संग ,
वादा वफ़ा का ,
बेफिक्री से,यु ही,
धुंए में  उड़ा दिया। 


खुश रहो, यु ही तुम ,
सोच में पड़े  , क्यों यु ही हम। 
ख़त्म किया , रहम दिया ,
बेवफा तूने ,यु ही हमको ,
ऐसा ,क्यों मरहम दिया। 

हर सुबह , खवाब के एक पन्ने में ,
जिक्र क्यों ,
यु ही तेरा हो जाता है। 
फिक्र का सैलाब , उमड़ घुमड़  ,
दिल को ,
क्यों यु ही,  
भूली यादो को उघेड़ ,
तेरी दीवानगी का   ,
फिर एक बार ,
यु ही ,
आशिक़ बना  जाता है । 

शिकन नहीं , कोई बात नहीं , 
वक्त की झुर्रियों की सौगात ,
खुदा से तुम्हे ,यु ही मिलेंगे। 

वक्त ही वक्त होगा , 
फिर यु ही,
हुस्न  की हिजाब का,
हिसाब - किताब , 
बख्त मेरी क्या ,
तेरा हमसंग हमसाया ,
वक्त लेगा। 

पिकाचु 


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