क्यों तुमने ,
यु ही मेरे संग ,
यु ही मेरे संग ,
वादा वफ़ा का ,
बेफिक्री से,यु ही,
धुंए में उड़ा दिया।
खुश रहो, यु ही तुम ,
सोच में पड़े , क्यों यु ही हम।
ख़त्म किया , रहम दिया ,
बेवफा तूने ,यु ही हमको ,
ऐसा ,क्यों मरहम दिया।
हर सुबह , खवाब के एक पन्ने में ,
जिक्र क्यों ,
यु ही तेरा हो जाता है।
फिक्र का सैलाब , उमड़ घुमड़ ,
दिल को ,
क्यों यु ही,
भूली यादो को उघेड़ ,
तेरी दीवानगी का ,
तेरी दीवानगी का ,
फिर एक बार ,
यु ही ,
आशिक़ बना जाता है ।
यु ही ,
आशिक़ बना जाता है ।
शिकन नहीं , कोई बात नहीं ,
वक्त की झुर्रियों की सौगात ,
खुदा से तुम्हे ,यु ही मिलेंगे।
वक्त ही वक्त होगा ,
फिर यु ही,
हुस्न की हिजाब का,
हिसाब - किताब ,
बख्त मेरी क्या ,
तेरा हमसंग हमसाया ,
वक्त लेगा।
पिकाचु
No comments:
Post a Comment