सपना अपना इस जीवन का ,
टूट गया है।
पूंजी अपनी इस संगत का ,
बिखर गया है।
राही रास्ता , इस मंजिल का ,
खो गया है।
दर्द है इतना , इसको सहते ,
टूट गया हु।
किदन्ती इतनी , इस व्यथा की ,
संकलन करना, छोड़ दिया है ।
कैसे बताऊ ,
मौला अपना, इस अनुयायी को ,
इस मंझधार में,
क्यों भूल गया है।
क्यों भूल गया है।
पिकाचु
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