Saturday, January 28, 2017

कफ़न बेचता हु

मैं ईमानदारी से ईमान बेचता हु ,
कफ़न की एक दुकान है , कफ़न बेचता हु।

मैं फक्र से जुआ जिंदगी का, खेलता हु ।
जिंदगी है कि, पल पल की ख़ामोशी में ,
मौत का जुआ बेचता है।

मैंने  प्यार, ज्योति , जाया , सीरत से किया ,
सभी ने बड़े प्यार से,
मुझे प्यार का, मूर्त बना दिया।

मैं दुनियादारी नहीं जानता,
बड़े इत्मिनान से,
इस जहाँवालों ने दुनियादारी, का दुकान दे दिया ।

मैं जिंदगी की मुकाम से,
क्या जरा फीसल सा गया ,
जिंदगी की हर दुकान ने ,
नाकारा ,आवरा करार ,
मुझे भिखारी बना दिया ।

मैं कफ़न की दुकान खोलने,
फिर निकल तो चला ,पुकारा किसी  ने  ,
थोड़ा रुक, ठहर तो जरा ।
यहाँ हर इंसान, नंगा है खड़ा ,
कफ़न किसको बेचेगा ,
ये तो बता , तू जरा।

पिकाचु 

No comments:

Post a Comment