देखा जो मैंने ,
कैसे ये तूने ,
बेचे ये गैरत।
सौदा जो किसीका ,
तुझको निभाना ही था।
मदहोश क्यों कर गए ,
जब दूर जाना ही था।
धोखा जो देना था ,
अपनी ख़ुशी के लिए,
मेरे खुदगर्ज प्रिय
बताना था पहले ,
मुहल्ले से मैं सारे ,
दो चार यार, यूँ ही ले आता।
जनाजे को तुम्हे कांधा ,
देनी की न आती, ये नौबत ,
शिकायत , फिर ये तेरी, न होती ,
चाक , चौबारे , मुहल्ले से ।
जनाजा जो तेरे दर से ,
उठता ये मेरा ,
आहे ये मेरी,
सदा बतलाती ,
कातिल तू है मेरी।
सदाये ये मेरी ,
पीछे है तेरी ,
छोड़ेंगी न यूँ ही।
आके जरा तुम ,
जनाजे को छू जाओ ,
मेरी मोहब्बत को
सदा के लिए ,
अमर करके
तुम चली जाओ।
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