Tuesday, October 11, 2016

कवि की कल्पना

कवि की कल्पना में ,
कवि की कविता में ,
कवि की रचना में ,
कवि और उसकी स्त्रीलिंग  ही है।

लोहे की स्त्री जब गर्म होती है ,
कपडे तब नर्म हो जाते है ,
आड़े ,तिरछे , कपडे की रेखाए ,
सीधी हो जाती है।

कवि  की स्त्री गर्म हो तो ,
कवि की कल्पना,  कविता तथा रचना ,
को ग्रहण लग जाता है।

कवि ही ऐसा व्यक्ति है ,
जो वीर रस , हास्य रस , शौर्य रस ,
कि परिकल्पना से दुनिया इधर से उधर करता है।
यथार्त में कवि के पास न वीरता , न शौर्यता ,  न हास्य , है ?.
बस और बस उसकी बेचारगी है।

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