Saturday, October 15, 2016

सपने देखने की आदत


सपने देखने की आदत थी ,
हर गली , चाक  चौबारे पे ,
निकलती कोई भी किसी चौराहे से ,
सपना बना लेते हम उसे,
इशारे - इशारो  से।

हिदायत थी हम सभी  परवानो को  ,
भूल से भी कोई न काटना,  हमारे रास्तो को ,
भाभी जो तेरी बन गई थी वो सपनो में  ,
निभाना तो था ही, हकीकत में हम सभी अपनों को।

फितरत हमारी कैसे ये हो गई ,
सपनो में कई को उड़ा के ले गई।


मौजो के  मस्ती में डूबे थे हम सभी ,
बस वक़्त  न ठहरा , बढ़ चला।

परवानो के लौ कब बुझने को आये ,
ये तो हम देख न पाए।

हम तो वही है  यारो , चाक चौबारे पे ,
बच्चे खेला रहे है  , मामा बन,
तेरी -मेरी भाभियो के।











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