Friday, October 7, 2016

जीवन की है तीन पूंजी


जीवन की  है तीन पूंजी ,
बचपन , जवानी और बुढ़ापा।
समझ के भी जो न समझा ,
वो तो हम , तुम और सब  सारे है।

समझ में जब मेरे आया ,
दुनिया ने समझा  नासमझ।  कहा !

साथ न चलो हमारे, हमें मंजूर है,
रौशनी और साज न बनो , हमें मंजूर है ,
क्यों विचारो से क़त्ल करते हो हमें ,
जंजीर तो मत बनो हमारे ,
ये हमें नामंजूर है ।

अँधेरे में रौशनी ढूंढना ,
आवाज में साज ढूढना ,
ओ मेरे ,सूरदास , बधीरदास ,
वक्त का तकाजा  समझो ,
अँधेरे में तीर, कभी खुद को चीर जाती है।






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