Saturday, October 8, 2016

कौन है फूल

सुबह सवेरे मैंने देखे दो फूल ,
सोच मेरी कही खो गई ,
पूछा खुद से, कौन है फूल ,

रंग बिरंगी ,सतरंगी , फूल ,
ठेले पर सजी , पानी सी कुछ भींगी ,
अपनी सुंदरता से मन को मोहे ,
खुसबू  दूर तल्क जिसके बिखेरे ,
आकर्षित हो , सब देखे,
सजे थे ऐसे  फूल।

फूलो को गूँथ रही थी ,
रंग बिरंगी अकारो व मालो में,
वो महिला।
पास खड़े थे ठुमक -ठुमक  करते ,
नंगे बदन , नंगे पैर  ,
दो छोटे  से उसके बच्चे।

फूलो के भक्त, कोई पण्डित , कोई ज्ञानी  ,
सभी सम्भ्रांत , समझ से परिपूर्ण ,
मोल -भाव करने में  तल्लीन ,
लेते चले जाते सूंदर से निर्जीव फूल ,

मैं क्या बोलू समझ न पाया ,
कौन है असली फूल ,
नंगे बदन ये बच्चे या ये  निर्जीव फूल।

मानव की सोच को कैसे  हो गया, ये पक्षघात ,
क्या यही है , वर्तमान का मानव विकास।

No comments:

Post a Comment