Saturday, October 15, 2016

कोशिश करना

व्यक्ति से समाज ,
गुरु से ज्ञान ,
व्यव्हार से सम्मान ,
कर्तव्य  है प्रधान ,
सार है इस कवि का।

कोशिश करना ,
सीखना , समझना, पहचानना ,
हारा हु , फिर भी  हारने की चाहत है ,
खुशियाँ बिखेरने की रवायात ,
आधार है, मेरी छोटी सी इस जिंदगी का।



बंदिगी है परवरदिगार की ,
विरक्ति है धर्म के वहम से ,
लोभ है इंसानियत का ,
झोभ है,  नासमझी का ।

इन्तेजार है मुझे
सिर्फ उस यम का।
साथ ले जाने को बैठा मैं
क्रोध , काम , ईष्या ,
द्वेष  मोह -माया को ।

चलो चले मैं , तुम,  हम और  सभी ,
रुखसत करने उस द्वार तक ।
क्या साथ दे पाओगे, आप सभी !.

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