चंचल मन ,कोमल सा ह्रदय ,
अटखेलिया , ठिठोलिया , नटखनापन
तभी तो होते है ये बच्चे ,
रोज सवेरे जाते ये बच्चे ,
बढ़ने और पढ़ने को स्कूल।
देखा जो मैंने आज इनको,
शांत थे सारे ,नहीं थी कोई आवाज
सोचा जो मैंने , ऐसा क्या हुआ ,
कैसे हो गए ये रातोरात, ये बड़े बच्चे।
सोचा जो मैंने ,क्या हुआ ऐसा ,
पूछा जो मैंने अपनेआप से ,
गुमसुम , गमजदा, बच्चे ,
युद्ध या स्कूल , कौन से ओर
ले चले हम इन माटी के कच्चे ,
दिल के सच्चे बच्चो को।
सोचा खुदा के बंदिगी के साथ ,
चले तो हम भी थे एक दिन ,
डगर में इतनी मोड़े थी ,
रास्ता जो भूले हम ,
फसल जो बोई है बैर की,
इम्तिहान है ये शर्मिंदिगी की।
फिर क्यों बनाये इन बच्चो को ,
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