Monday, February 27, 2017

कुछ ऐसा लिखू ,लिखकर,
मैं ,
अमर हो जाऊ। 

कुछ ऐसा करू ,सपनो को,
मैं ,
हकीकत कर  दू। 

कुछ ऐसा देखु ,गिरते हुए को ,
मैं 
खुदा की रहमत दिला  दू। 

कुछ ऐसा चलु ,
मैं। 
भटके हुए मंजिल मिल जाये। 

दिल ने कुछ भूले यादो को,
तराशा तो सोचा ,
माँ ने ,कुछ ऐसा ही, बचपन में कहा था। 
कसक सी उठी , खुद में , 
कुछ करने की कीमत, क्यों है इतनी। 

पिकचु 







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