जोशीले नौजवानों ,
कहाँ गुम हो तुम।
ढूंढ रहा है जोश तुम्हारा ,
दर दर भटके , गुहार लगाये ,
मेरा नौजवान दोपहरिया छोड़,
वातानुकूलित में बंद क्यों ।
कुछ पल की ये आमोदक ,
नौजवान क्या तेरा, तल चिन्ह इतना उथला।
मान पड़ा क्यों कैसे तू ,
जब
धरती माँ की दोहन को,
सब ओर खड़े मंदबुद्धि हैवान ।
धार प्रवाह , पे ,
धुँए का मैला चादर,
तेरे जोश को ढक कर ,
वर्तमान , भविष्य का , चिंतन, ज्ञान को ,
मजे मजे में ,
पंगु , लुल्हा , टुटहा करता।
कुछ करने को ठाना है तो ,
जोश में आओ , ओ जोशीले ,
सब्र बांध का तोड़कर तुम ,
हाथ में ,
कील हथौड़े औजार और , पाना ,
ले ठोक दो तुम, इस आमोदक को।
पिकाचु
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