Saturday, February 4, 2017

कोरे कागज

कुछ लिखना है कुछ भूलना है ,
बिसरे यादे , मुझे इस ,
कोरे कागज में क्रमबद्ध  करना है।

आज तो सब कुछ कोरा है ,
कर्म कर्तव्य ज्ञान भी  अधूरा है।

कल क्या है ,
एक भूल भुलैया, आप धापी,
जोड़ तोड़ की आँख मिचौनी।
एक बेचैंनी,
आने वाले पल की।

मेरा कल क्या था ,
ये खोज रहा हु।
बिसरे पल का  लेखा जोखा ,
कोरे कागज में  ढूंढ रहा हु।

कसमकश की बेदी पे ,
तन मन धन का दर्पण ,
बिखर चूका है।
खोये हुए अहसासों को ,
फिर क्यों ,वक्त आज ये,
तलाश रहा है।

छिपा हुआ है,
आज जो मेरा कल के अंधियारे में।
ढूंढ रहा है , निश्छल होकर,
कोरे कागज को रौशन करने ,
भोर का उजियाला।

पिकाचु



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