कुछ लिखना है कुछ भूलना है ,
बिसरे यादे , मुझे इस ,
कोरे कागज में क्रमबद्ध करना है।
आज तो सब कुछ कोरा है ,
कर्म कर्तव्य ज्ञान भी अधूरा है।
कल क्या है ,
एक भूल भुलैया, आप धापी,
जोड़ तोड़ की आँख मिचौनी।
एक बेचैंनी,
आने वाले पल की।
मेरा कल क्या था ,
ये खोज रहा हु।
बिसरे पल का लेखा जोखा ,
कोरे कागज में ढूंढ रहा हु।
कसमकश की बेदी पे ,
तन मन धन का दर्पण ,
बिखर चूका है।
खोये हुए अहसासों को ,
फिर क्यों ,वक्त आज ये,
तलाश रहा है।
छिपा हुआ है,
आज जो मेरा कल के अंधियारे में।
ढूंढ रहा है , निश्छल होकर,
कोरे कागज को रौशन करने ,
भोर का उजियाला।
पिकाचु
बिसरे यादे , मुझे इस ,
कोरे कागज में क्रमबद्ध करना है।
आज तो सब कुछ कोरा है ,
कर्म कर्तव्य ज्ञान भी अधूरा है।
कल क्या है ,
एक भूल भुलैया, आप धापी,
जोड़ तोड़ की आँख मिचौनी।
एक बेचैंनी,
आने वाले पल की।
मेरा कल क्या था ,
ये खोज रहा हु।
बिसरे पल का लेखा जोखा ,
कोरे कागज में ढूंढ रहा हु।
कसमकश की बेदी पे ,
तन मन धन का दर्पण ,
बिखर चूका है।
खोये हुए अहसासों को ,
फिर क्यों ,वक्त आज ये,
तलाश रहा है।
छिपा हुआ है,
आज जो मेरा कल के अंधियारे में।
ढूंढ रहा है , निश्छल होकर,
कोरे कागज को रौशन करने ,
भोर का उजियाला।
पिकाचु
No comments:
Post a Comment