Saturday, February 25, 2017

आदमी से इंसान तो बन जाओ

हवा का रुख हम न भांप पाये  ,
टूटते हुए घरो को हम न जोड़ पाये ,
कुछ करने की चाहत थी, मन में ,
दिल से जुबाँ पे चाहत ,तो ले आये , 
न  जाने क्यों , 
बाजुओ में, वो हौसला न ला पाये। 

वक्त के इस मंजर पे ,अभी जो तुम न सम्भल पाये ,
घुट घुट के मरोगे तुम।  
जो कि , अपने बचेंगे कहाँ , तुम्हारे आसपास ,
उम्र के इस आखिरी पड़ाव पे। 

समस्या है बड़ी ये , 
कौन है अपना इस अंतिम दौर में।

रातो नींद उड़ाई थी, जिस बबुआ के लिए ,
नासमझ, वो कमाने को ,
क्यों इतनी दूर निकल है, पड़ा।  

पढ़ा है उम्र जीने का बढ़ गया है, दोस्त।
देखा है मौत और दूर थोड़ा चल गया है, दोस्त। 
क्या फायदा , अपने जिसके लिए जिये  थे, सदा,
वही हाथ छोड़.
किसी और के साथ , उसके  घर चला गया है, सदा। 


दोस्त  , वो खुद को संभालेंगे कि,
गैर की मुसीबत को गले लगाएंगे। 

वक्त है आदमी से इंसान तो बन जाओ  ,
कब्र में चैन से सोने के लिए , कुछ भला तो कर जाओ। 

पिकचु 

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